वीरो की धरती राजस्थान का अरावली पर्वतमालाओ से घिरा बेहद खुबसूरत सिंह द्वार देश की राजधानी दिल्ली और राजस्थान की राजधानी जयपुर दोनों के बिलकुल बीच एकमात्र बिना मात्रा का शहर अलवर | अलवर जिले में 11 विधानसभा है लेकिन अलवर लोकसभा में सिर्फ 8 विधानसभाये अलवर शहर, अलवर ग्रामीण, राजगद, रामगढ, किशनगड, तिजारा, मुण्डावर,और बहरोड़ शामिल है |
अलवर लोकसभा का पहला चुनाव 1952 में हुआ इस चुनाव की तीन खास बात थी पहली लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए, दूसरी ये चुनाव बैलेट पेपर से नही हुए और तीसरी खास बात थी मुंडवार से घासीराम यादव और कठूमर से सम्पतराम निर्विरोध विजयी हुए | इस चुनाव में प्रत्यासी के चुनाव चिन्ह एक बोक्स पर चिपका दिए गए उसमे मतदाता को सिर्फ पर्ची डालनी थी जितनी पर्ची उस पेटी में निकली वो उस प्रत्यासी के वोट माने गए | अलवर लोकसभा में पहला चुनाव ऐसे हुआ जिसमे काँग्रेस के चुनाव चिन्ह दो बेलो की जोड़ी पर बाबु शोभा राम चुनाह जीते| इस चुनाव में 382999 कुल मतदाता थे इनमे से 199856 वैध मत थे | आज़ादी के बाद पहले चुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव में वोटर, मुद्दे, क्षेत्र, और पार्टियाँ सब बदल चूकी है | अलवर लोकसभा में अब तक कांग्रेस 11 बार और भाजपा 4 बार विजयी हो चुकी है |
2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 1888524 वोट थे जिसमे पुरुष मतदाता 1002488 और महिला मतदाता 886026 रहे, कुल 67% मतदान हुआ | इस चुनाव में जाति के हिसाब से अनुसूचित समाज के (4,34,360) 23% , मुस्लिम समाज (3,58,819) 19%, यादव समाज 2,45,508 (13%), ब्राह्मण (1,92,818) 10.21%, जाट (1,56,936) 8.31%, वैश्य ( 1,24,453) 6.59%, ST (1,11,422) 5.9%, माली (94,992) 5.03%, गुर्जर (73,085) 3.87%, राजपूत (37,770) 2%, अन्य जातिया 3.09% लगभग वोट थे|
अलवर लोकसभा में अनुसूचित जाति के वोट सबसे जायदा है लेकिन वो कभी एक साथ नही डालते इसलिय कोई पार्टी इनको टिकट नही देती | मुश्लिम समाज का वोट कांग्रेस को बिना कहे मिल जाता है इसलिए उन्हें काँग्रेस भी उन्हें टिकट नही देती | कभी कभी चुनाव में तड़का लगाने के लिए बसपा जरुर किसी मुश्लिम को अपना प्रत्यासी बना देती है जेसे 2019 के चुनाव में इमरान खान को बसपा से लोकसभा प्रत्यासी बनाया गया उसने (56,649) 4.48% वोट हासिल किया लेकिन इमरान ने बसपा पार्टी को ही तड़का लगा दिया तिजारा विधानसभा से बसपा की टिकट फायनल कराकर अंतिम समय में बसपा की टिकट को लात मारकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा| जिसमे उसे महंत बालकनाथ के हाथो शिकस्त मिली |
यादव समाज बड़ा वोट बैंक है यादव समाज के वोट एक साथ पढते है तभी इस लोकसभा में अब तक कुल 18 चुनाव हुए जिसमे 10 में यादव प्रत्यासी जीते | दो बार रामजीलाल यादव, दो बार रामसिंह यादव, दो बार करन सिंह यादव और घासीराम यादव, जसवंत यादव, महंत चांदनाथ, महंत बालकनाथ एक एक बार जीते है |
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 60.2% (7,60,201), कांग्रेस को 34.2%(4,30,230) और बसपा को 4.48% (56,649) मिले | लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बहरोड़ से भाजपा ने 98757 वोट से, मुण्डावर से 80759 वोट से, अलवर शहर से 45879 वोट से, किशनगद से 47144 वोट से, तिजारा से 30738 वोट से, अलवर ग्रामीण से 8527 वोट से जीत दर्ज की| सिर्फ राजगद विधानसभा सीट से कांग्रेस 10535 वोट से आगे रही लेकिन 2023 के अलवर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 58883 से रामगढ, 35,624 से मुण्डावर, 27333 से अलवर ग्रामीण, 22567 से राजगद, 10496 से किशनगड़ में भाजपा को शिकस्त दी और मात्र 3 विधानसभा 23732 से बहरोड़, 9087 से अलवर शहर, 6173 से तिजारा भाजपा जीती| आठ विधानसभाओ में कांग्रेस को कुल 7.25 लाख वोट मिले जबकि भाजपा को कुल 5.28 लाख वोट मिले| जिस तरह भाजपा का वोट लगातार गिर रहा है वो भाजपा के लिए चिंता का विषय है और कांग्रेस के लिए राहत की खबर है |
यादव समाज भाजपा का कोर वोट है इसलिए 1996, 1998, 1999 में जसवंत यादव, 2004 में महंत चांदनाथ, 2009 में किरण यादव, 2014 में महंत चांदनाथ, 2018 के उप चुनाव में जसवंत यादव, 2019 में महंत बालकनाथ को टिकट दिया है | 2014 में महंत चांदनाथ से 2.86 लाख व् 2019 में महंत बालकनाथ से 3.30 लाख वोटो के बड़े अंतराल से राजपरिवार से सम्बन्ध रखने वाले भंवर जितेन्द्र चुनाव हार चुके है बावजूद इसके काँग्रेस सत्ता परिवर्तन के भरोसे हाथ पर हाथ रखे बेठी है उनकी और से कोई खास रणनीति दिखाई नही पड़ती और न ही अब तक कोई प्रत्यासी फायनल कर पाई है जबकि यादव समाज के बड़े चेहरे भूपेंद्र यादव को अलवर से टिकट देकर भाजपा ने फिर से काँग्रेस की नींद उड़ा दी और टिकट विवाद से बचने के लिय पहले ही बालकनाथ को तिजारा में विधायक का टिकट देकर उन्हें साइड लाइन कर दिया जो उनके कद को कम करने की निशानी है उन्हें खुद की पकड और घटती शाख पर विचार करना होगा|
अलवर का ब्राह्मण समाज पहले कई बार कांग्रेस सिम्बल को जीता चूका है लेकिन अब वो भाजपा के लिए लामबंध है इसलिए काँग्रेस को अलवर लोकसभा जितने के लिए पूर्व सासद करणसिंह यादव जेसे मजबूत नेता, युवा मुण्डावर विधायक ललित यादव या पूर्व बसपा विधायक संदीप यादव को मैदान में उतारना पड़ेगा क्योकि यादव समाज के वोट के साथ अनुसूचित समाज, मुश्लिम समाज और काँग्रेस का कोर वोट जुड़कर भाजपा को टक्कर दे सकता है|
दैनिक भास्कर की सर्वे के मुताबिक अलवर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से भंवर जीतेन्द्र 42%, ललित यादव 22% और संदीप यादव 14% लोगो की पसंद बताये जा रहे है लेकिन इस सर्वे से जनता सहमत नही है क्योकि सच्चाई इस से बिलकुल उल्ट है | दो बार लगातार हारने, असम का प्रदेश का प्रभारी और संघटन में व्यस्ता के चलते हो सकता है इस बार जीतेन्द्र सिंह चुनाव नही लडे | भाजपा को हमेशा बहरोड़ और मुण्डावर से भारी बढ़त मिलती है चांदनाथ ओर बालकनाथ जब चुनाव लडे तो उनको जबरदस्त वोटिंग देखने को मिली लेकिन जब करन सिंह यादव चुनाव लडे तो वहा लीड कम हुई जिसके कारन वो जीत पाए| करन सिंह यादव उम्र की वजह से चुनाव नही लड़ते है तो कांग्रेस के पास ललित यादव और संदीप यादव ही बचते है | ललित यादव चुनाव लड़ते है तो कांग्रेस के पक्ष में लोकल होने के नाते बहरोड़ और मुण्डावर में भारी वोटिंग देखने को मिल सकती है लेकिन वो अभी वर्तमान में विधायक है कांग्रेस अपनी एक सीट का नुकशान नही करना चाहेगी | संदीप यादव 2018 में बसपा के सिम्बल से तिजारा से चुनाव जीते थे उसके बाद उसने कांग्रेस को ज्वाइन किया उसके बाद 2023 में किशनगद से टिकट चाहते थे लेकिन उन्हें उस समय लोकसभा का आस्वासन देकर शांत किया गया तो अब संदीप को विधानसभा चुनाव लड़ते है तो तिजारा और किशनगद में भारी वोटिंग हो सकती है क्योकि वो युवाओ में अपनी पहचान रखते है |
तिजारा, किशनगद रामगढ, राजगद और अलवर ग्रामीण इन विधानसभाओ में कांग्रेस का अच्छा वोट बैंक है बस कांग्रेस इस बात को बेहतर समझे और वोट बैंक को सम्हालने के साथ साथ टिकट वितरण और चुनाव मेनेजमेंट सही से करे क्योकि इस बात में कोई दोहराय नही की भाजपा के टक्कर का कांग्रेस के पास न तो चुनावी प्रबंधन है और न ही आईटी टीम | एक समय कहा जाता था की कांग्रेस की जड हर घर के चूल्हे तक है लेकिन समय समय पर नही सम्हालने के कारन आज सिर्फ वो संघटन कागजो में रह गया है | यही कारन है की सबसे पुरानी पार्टी होने का बाद और इतना विशाल संघटन होने के बाद वोट लगातार कम होते जा रहे है वो वोट के रूप में बूथ तक पहुच ही नही पाते| भाजपा ने इतना संघर्ष किया रोड़ो पर आन्दोलन किये, हर छोटी छोटी बात पर रोड जाम ओर अन्य प्रदर्शन होते थे लेकिन कांग्रेस अपना मूल भाव भूल गई की केसे उनके पुराने नेता जेल गए? उन्होंने केसे संघर्ष किया? केसे आन्दोलन किये ? किन परिस्तिथि में संघटन को खड़ा किया ? शायद इतने साल कांग्रेस सत्ता में रही तो अपने नेताओ का संघर्ष भूलना स्वाभिविक ही था| राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा से उन्होंने खुद को एक गंभीर नेता के रूप में स्थापित किया उसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ की भाजपा के नेता अब राहुल को पप्पू नही कहते और इंडिया गठबंधन के अन्य घटक भी राहुल को सिरियस लेते हैं|
लेखक
डॉ. हरीश कुंद्रा
समाजसेवी और राजनितिक विश्लेषक