किसान आन्दोलन विशेष

News Publish Date: June 9, 2025

 

“उत्तम खेती मध्यम बान, करे चाकरी अधम समान” अर्थात आजीविका का सबसे उत्तम साधन कृषि है, व्यापार और नॉकरी का स्थान उसके बाद आता है । क्या आज के समय में इस कहावत का कोई मूल्य है? आखिर किसान की परिभाषा क्या है ? क्या किसान वो है जिसकी जमीन है ?  या वो जो किसी की जमीन पर मेहनत करता है? कितनी जमीन का मालिक किसान कहलाता है ? किसान की परिभाषा स्पष्ट नही है भारत मे किसान का मतलब कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ इंसान है। भले ही आज नए नए आयामो के दरवाजे खुले गए हो लेकिन एक समय मे कृषि आत्मनिर्भर होने का मूल आधार थी। लेकिन समय समय पर विदेशी आक्रान्ताओ ओर देशी राजाओ की भूख ने आत्मनिर्भर खेती की जगह जमीदारा व्यवस्था आरम्भ की जो भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट करने जैसा ही था। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि ओर किसान दोनों महत्वपूर्ण है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 54.6% लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए है । 1950-51 में भारत मे अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 51.81% रहा। 2013 में 18.20% , 2016-17 में मात्र 17.4% रह गया।

भारत में जहाँ पहले कृषि को सबसे उत्तम माना जाता था आज कोई किसान अपने बेटे को किसान बनने के लिए नही कहता क्योकि किसानों का शोषण, कृषि उपज का उचित दाम ना मिलना, किसानों पर बढ़ता कर्ज, बिजली के बिल, बढ़ते हुए शुल्क ओर सरकारी तंत्र द्वारा अवहेलना ने उन्हें आत्महत्या के फंदे तक पहुचा दिया । इन सभी से परेशान होकर किसानों ने तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, उड़ीसा सभी जगह आंदोलन किये। भारत मे किसान आंदोलन का 200 वर्षो का इतिहास रहा है। 1859 - 62 में नील विद्रोह, पाबना आंदोलन 1870- 80, दक्कन विद्रोह 1875, भीलवाड़ा की बिजोलिया रियासत में 1897 से 1941 तक पूरे 44 साल तक किसान आंदोलन चला। किसानों ने 2 साल तक खेती रोक दी फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। 1917 में नील किसानों ने देश का पहला संघटित आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण में किया। उसके बाद केरल, पंजाब, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, मद्रास और बिहार में भी किसान आंदोलन हुए जो राष्ट्रीय आंदोलन के सार्थी बने। गांधी जी कहते थे कि चंद मुठ्ठी भर राजा गण हिंदुस्तान का अर्थ नही है बल्कि वो करोड़ो किसान है जो मौत को तकिया बनाकर सोते है उन्हें तलवार चलाना नही आता लेकिन उन्हें  किसी तलवार से डर भी नही लगता ।

          1918 में मदन मोहन मालवीय, इंद्र नारायण द्विवेदी ओर गौरी शंकर मिश्र आदि ने मिलकर अवध किसान सभा का गठन किया 1920 में किसान संघर्ष को दबाने के लिए कई बार उन पर गोलिया तक चली वो शहीद भी हुए लेकिन किसान डटे रहे। 1925- 30 में विश्व आर्थिक संकट से कृषि उत्पादों की कीमतें गिर गई जिससे किसानों की आर्थिक स्तिथि काफी कमजोर हो गई। फिर भी किसानों ने 1928 में बारदोली सत्याग्रह में सफलता मिली, 1930 में सिविल नाफरमानी आंदोलन किया, उसके बाद तो तमाम आंदोलन हुए 1938 में पटना में एक लाख किसानों ने सभा कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के कारण किसान आंदोलन थोड़ा रुक सा गया। लेकिन जब भी देश को किसान की जरूरत पड़ी अपनी जान की परवाह न करते हुये आज़ादी के रास्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया और जब देश के आज़ाद होने के बाद जब अमेरिका गेँहू देने के लिए नखरे करता था और हमे लाल गेंहु देता था तब देश के किसानों ने भूखे प्यासे रहकर हरित क्रांति लेकर देश को मजबूत कर भारत के मान सम्मान की रक्षा की।

            नेशनल अकाउंट्स डेटा के अनुसार कृषि अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष औसतन 15168 किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहे है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार साल 1997-98 में लगभग 6000 किसानों ने आत्महत्या की । मंदसौर में पुलिस की गोली से 6 किसानों को मौत हुई। भीषण सूखे और सर्वाधिक आत्महत्या के बाद विदर्भ क्षेत्र मौत का गवाह बना । यवतमाल सहित इस क्षेत्र में 40 से अधिक किसानों की मौत हुई।

        देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 20 %  होने के बाद भी 60% लोगो को रोजगार मिल रहा है फिर भी भारत मे कृषि और किसान को जितना महत्व मिलना चाहिए उतना नही मिल रहा है। भारत मे 60% कृषि बारिश पर आधारित है केवल 40% कृषि के लिए ही सिंचाई उपलब्ध है। 1986 में 22 जिलो में  किसानों के जीवन स्तर में सुधार के लिए गेंहु ओर धान पर न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP) शुरू की गई लेकिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़कर कहीं भी MSP की व्यवस्था नही है । जिसके कारण किसान सर्दी, गर्मी और बरसात की कठिन परिस्तिथियों में रहकर फसल तैयार करता है लेकिन उसको उचित दाम नही मिलता स्टोर ओर फसल को बचाने की अन्य सुविधा नही होने के कारण तुरन्त कम रेट में ही बिचोलियों को फसल बेचनी पड़ती है यही कारण है किसान मरने पर मजबूर है और बिचोलिये मोटा मुनाफा कमा रहे है।  महंगाई के हिसाब से ओर सरकारी महकमे में वेतन आयोग लागू होने के बाद भी MSP में बढ़ोतरी नही की गई । ये अलग बात है कि लगभग 62 करोड़ किसानों के वोट से नेता बनने वाले देश और किसानों की सेवा की कसम खाने वालो की सैलरी ओर अन्य सुविधाएं बढ़ती जा रही है चन्द सालो में करोड़ो की संपत्ति ना जाने कैसे बन जाती है और जब किसान इनसे अधिकार मांगता है तो यही नेता किसानों को चीनी, पाकिस्तानी, खालिस्तानी, आतंकवादी, देशद्रोही तक कहते है ये देश की आधी आबादी के साथ धोखा नही तो ओर क्या है ?

   हर वर्ष कृषि आबादी में लगभग 1.84% की व्रद्धि हो रही है जिसके कारण खेत हर वर्ष छोटे होते जा रहे है ।कृषि भी अनुकूल नही रही जिसके कारण किसान और अधिक कर्ज वान जो गया है । ये किसी से छिपा नही है कि उधोग को खड़ा करने के लिए तमाम सुविधा दी जाती है, जमीन सस्ती दी जाती है, लोन पर सब्सिडी दी जाती है, उनसे इंटरेस्ट कम लिया जाता, उनके लोन माफ कर दिए जाते है, उधोगो को उबारने के लिए विशेष राहत दी जेक है, उनको टैक्स में छूट दी जाति है यहाँ तक कि नेता ओर उनकी पार्टी चुनाव में उनसे फंडिंग लेते है और उनके हिसाब से कार्ये करते है तभी अपने रसूख से ओर पैसे के दम से अपने हिसाब से नियम तक बदलवा लिए जाते है ओर कई सालो से देखने मे आ रहा है कि बहुत सारा कर्ज लेकर उधोगपति देश से भाग जाते है जबकि किसानों को चन्द रुपयों के लिए बैंक इतना परेशान करता है कि अपने परिवार को छोड़कर फाशी का फंदे पर लटक जाता है।

    किसानों की बेहाली का अंदाजा उनके कर्ज से लगाया जा सकता है कृषि राज्य मंत्री पुरषोत्तम रुपाला ने नवम्बर 2016 में जानकारी दी कि किसानों पर वर्तमान में 12 लाख 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है इसे माफ करने के लिए राज्य सरकार के पास पैसा ही नही है । देश मे 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाया जाता है लेकिन ये सिर्फ दिखावा ओर सरकारी प्रोग्राम में तमासा मात्र है क्योकि सच्चाई सब जानते है कि महिला किसानों का क्या हाल है क्योकि खेत मे काम करने वाले पुरुष अगर किसान कहलाते है तो उसकी खेत मे काम करने वाली महिला मजदूर कहलाती है । हालांकि सरकारों ने समय समय पर किसानों के उत्थान के लिये राष्ट्रीय किसान नीति 2007 (एनपीएफ ) बनाई, राष्ट्रीय कृषि योजना (एमएनएआईएस), राष्ट्रीय फसल बीमा योजना ओर पुंनसरचित मौसम आधारित फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बनी जी लेकिन एक प्रसार प्रचार इतना नही है और न ही किसानों को इसकी जानकारी है तो इसका कोई खास फायदा नही मिलता। किसानों के लिए कॉल सेंटर भी शुरू हुआ लेकिन सब जानते है सरकारी कॉल सेंटर में केसा जवाब ओर कितने समय मे मिलता है ये कुछ ऐसा ही है केस BSNL काल सेंटर में घंटो इंतेजार कराया जाता है ताकि कंज्यूमर खुद ही फोन कट करके निकल जाए फलस्वरूBSNL की हालत हम सब जानते है।

2015- 16 में कृषि लोन का लक्ष्य 850 करोड़ रखा गया और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 100% को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना का उद्देशय प्रत्येक किसान के खेत की सिंचाई करना लेकिन क्या हर खेत सिंचित हो रहा है? कृषि विकाश ओर किसान कल्याण के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम के तहत मृदा उर्वरकता में सुधार लाने का प्रयास क्या सफल है ?

  

 कृषि विकास पर ध्यान नही दिया जा रहा है ये सर्व विदित है ऐसा नही है कि स्कीम नही बनती लेकिन बनाने वाले वो लोग है जो एयर कंडीशनर कमरे में बैठ कर स्कीम बनाते है उन्होंने ना तो कभी खेत देखे और ना ही किसानों से जुड़ी बातो का कोई अनुभव  है। कृषि से जुड़ी स्कीम योजना का सही से किर्यान्वन ना होना भी एक वजह है। किसान का कृषि के लिए अब बीज, उर्वरक, जुताई, बिजाई, नीलाई,कटाई ओर बिक्री के लिए दूसरों पर निर्भरता ने उसे परावलम्बी बना दिया है। इससे खेती करना महंगा हो गया है छोटे किसानों के कृषि के बजाय मजदूरी करने पर विवश हो गया है। भारत का किसान और कृषि फिर से भारत के रीढ़ की हड्डी बने इसके लिए फसल का उचित दाम, कम ब्याज पर लोन, उचित समय पर लोन, सस्ता और उचित समय पर उर्वरक, फसल नष्ट होने पर फसल बीमा मिलना बेहद जरूरी है। यूरोपियन देश और अमेरिका जेसे तमाम विकसित देश कृषि के लिए सब्सिडी देते है ।

कृषि क्षेत्र में मिलने वाली अपर्याप्त बिजली, सिंचाई क्षेत्र में महंगा निवेश, महंगे खाद बीज, बढ़ती महँगाई, अप्रत्यक्ष कर में सुधार ओर आधुनिकरण ओर बाजारीकरण के लिए भी सुधार की बेहद जरूरत है। कर्नाटक के सफल एकीकृत बाजार प्लेटफॉम (यूएमपी) की तरह सरकार को ई- प्लेटफॉम उपलब्ध कराकर किसानों को उनकी उपज का अधिकतम भाव दिलाया जा सकता है।

कृषि क्षेत्र में भारी गिरावट के बावजूद इसके भारतीय अर्थव्यवस्था में में योगदान वैश्विक ओसत 6.1 % है विश्व मे कृषि योग्य भूमि में मामले में भारत 15.74करोड़ हेक्टयर कृषि योग्य भूमि होने के कारण दूसरा स्थान है । दुनिया मे मात्र 15 जलवायु क्षेत्र है जबकि भारत मे 20 कृषि जलवायु क्षेत्र है । भारत दुनिया मे अग्रणी 15 कृषि उत्पादक निर्यातक देशो में शामिल है। ये भारत के लिए गर्व की बात है लेकिन दुखद बात ये है कि इतना सब होने के बाद भी देश का किसान आत्महत्या ओर आंदोलन के लिए मजबूर है |

लेखक - डॉ. हरीश कुंद्रा 

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