OPERATION SINDOOR

News Publish Date: July 13, 2025

बेशक 21 वी सदी युद्ध की नही है बल्कि शांति है लेकिन इस टेक्नोलोजी और नये नये हथियारों के दौर में, जब अमेरिका जेसा देश दुसरे देश पर अपनी धाक ज़माने की कोशिश करे, युक्रेन जेसा देश जो अपने ही जनक के साथ गद्दारी करे, चीन जेसा देश जब अपने पड़ोसियों की सीमा पर कब्ज़ा करे, ईरान जेसा देश जो कट्टरवाद व् परमाणु हथियार बनाने की होड़ में खुद को बर्बाद करने पर तुला हो, या फिर पकिस्तान जेसा शैतान जो आतंकवादियों को पनाह देकर भारत में अशांति पैदा करने की कोशिश करे तो ऐसी परीस्तिथि में युद्ध होना लाजमी है | लगभग तीन साल पहले रूस और युक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ जो अभी तक जारी है और लगातार परमाणु युद्ध के खतरे और बड़े देशो के इस युद्ध में शामिल होने से तीसरे विश्व युद्ध की आहट से हमेशा डर बना हुआ है | यह युद्ध अभी तक ख़त्म भी नही हुआ की भारत के पहलगांव में 22 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियो ने भारत के नागरिको से उनका हिन्दू धर्म पूछ पूछ कर 26 मासूम लोगो को गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी| ये कायराना हमला भारत में हिन्दू और मुश्लिम एकता को तोड़ने का सोची समझी साजिश थी जिसमे वो रत्ती भर सफल नही हुआ | इस घटना ने समस्त भारतीयो के दिल को झकझोर दिया और उनके गुस्से को सातवे आसमान पर पंहुचा दिया | भारतीयों के दिल में इस हमले के प्रति दुःख और दर्द को देखते हुए भारत सरकार ने पकिस्तान को सबक सिखाने की ठान ली | 7 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर नाम से भारत ने पाकिस्तान मे स्तिथ आतंकवादी ठिकानो पर मिसाइल से हमला कर उन्हें नष्ट कर दिया | ये हमला इतना सटीक था की पाकिस्तान की आँखे खुलने से पहले आतंकवादी साफ़ हो गए जिसका दर्द गाहे बगाहे पाकिस्तानी नेताओ के बयानों में झलकता है | ये भारत सरकार और भारतीय सेना की एक बड़ी उपलब्धि रही | हालाकि इस युद्ध में दोनों देश अपने अपने तरीके से अपनी सफलता बता रहे है | 86 घंटे बाद 10 मई 2025 को दोनों देशो के बीच युद्ध विराम तय हुआ| अमेरिका के रास्ट्रपति ट्रम्प ने इस युद्ध विराम का श्रय लेने की हर संभव कोशिश की और अब तक लगभग 18 बार कई आयोजनों में बोल चुके है की दोनों देशो को ट्रेड की धमकी दे कर युद्ध विराम के लिए मनाया गया| ट्रम्प के इस बयां को आधार बनाकर भारत में पक्ष विपक्ष में हमेशा वाद विवाद होता रहता है की भारत ने ट्रम्प की मध्यस्ता स्वीकार की और उनके सामने झुक गए | अब इसका जवाब तो सत्ता में बेठे नेता बेहतर दे सकते है की कौन किसके समक्ष झुका ?

        भारतीय नेताओ के गठजोड़ को लोकतंत्र की खूबसूरती कहें या नेताओ की आपसी मज़बूरी | भारत में पक्ष और विपक्ष का हमेशा से ताल मेल रहा है जो कभी मिलजुल कर सरकार बनाने में दिखता है , तो कभी आपस में व्यापरिक सांठगाँठ करने में, तो कभी एक दुसरे के पाप और भ्रष्टाचार  छिपाने में, तो कभी एक दुसरे को जेल से बचाने में मिलता है और अगर कभी कोई नेता जेल चला भी जाये तो विपक्ष के नेताओ को जेल में सुविधा उपलब्ध करने में ये प्रत्यक्ष गठजोड़ दिखाई भले ही नही देता लेकिन झोल सबको दिखता है | ये गठजोड़ हर सरकार में कम ज्यादा रूप में चलता रहा है बाकि जनता को दिखाने के लिए आपस में लड़ना और मंचो पर एक दुसरे के खिलाफ भाषण देते हुए कटाक्ष करना आम बात है | खैर इन सब में एक बात जो बेहद खुबसूरत है वो है भारत का पाकिस्तान या अन्य किसी देश से झगडा होने पर सभी नेताओ का सार्वजानिक रूप से एक हो जाना | इस बात का इतिहास गवाह है की भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु जी की प्रथम केबिनेट में गेर कांग्रेसी श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आंबेडकर जी मंत्री बने | पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में भी ऐसा हुआ  27 फरवरी 1994 को पाकिस्तान ने संयुक्त रास्त्र मानवाधिकार आयोग में ओर्गनिजेशन आफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) के जरिये प्रस्ताव रखा तो UNSC के कड़े पर्तिबंधो से बचने और इस प्रस्ताव का जिनेवा में जवाब देने के लिए सत्ता पक्ष के नेताओ के साथ विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपई को साथ लेकर अपनी टीम में शामिल किया और उसका रिजल्ट ये निकला की उस प्रस्ताव पर जोरदार जवाब दिया गया जिसके कारण वो प्रस्ताव पास नही हुआ और दुश्मनों की साजिश नाकाम हो गई |  

       ऑपरेशन सिंदूर को हुए दो माह से ज्यादा वक्त हो गया हैं। पहलगाम हमले के तीन महीने गुजर गए। इस बीच भारत के पक्ष और विपक्ष के नेताओ की सम्मलित टीम ने पाकिस्तान की घटिया साजिस व् आतंकवाद से सम्बन्ध को उजागर करने के लिए 33 देशों की यात्रा की। मकसद यही था कि पाकिस्तान की करतूत को सबके सामने लाया जाएगा और पाकिस्तान के आतंकवाद पर कथनी और करनी से दुनिया को अवगत कराया जाएगा। लेकिन असल सवाल यह है कि भारत को इन यात्राओ से मिला क्या ?

हर भारतीय के जहन में इस यात्रा से जुड़े कुछ सवाल है -

1.      ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के नेताओ द्वारा 33 देशो की यात्रा का फायदा क्या हुआ ?

2.      क्या किसी देश ने भारत के हमले को सही ठहराया ?

3.      क्या भारत का किसी देश ने समर्थन किया ?

4.      क्या भारत की बातो को किसी देश ने सिरियस लिया ?

5.      किसी भी देश ने भारत के साथ मिलकर आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ वैश्विक एजेंडा तय किया?

6.      क्या किसी देश ने भारत के साथ खड़े होने की जहमत उठाई ?

7.      कितने देशो ने युद्ध के दोरान भारत की सहयता की ?

8.      इतने दिनों अपने देश के कामो को छोड़ कर हमारे नेता क्यों अन्य देशो में दर दर भटके ?

9.      लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की इस मामले में क्या भूमिका है ?

इन सवालो का जवाब शायद भारत के नेताओ को मालूम है काश आम जनता को भी मालूम हो | अगर देश हित में इस तरहा के सवाल आप नेताओ से नही पूछ सकते तो स्वतंत्र भारत में रहकर भी गुलामी के बेडियो में जकड़े है| कभी वक्त निकाल कर खुद से सवाल पूछना की अंग्रेजो से आज़ाद होकर आज नेताओ की गुलामी करना कितना सही है ? अगर इन सवालो के जवाब नही मिलते है तो ये मान लिया जाये की इस यात्रा का मतलब सिर्फ और सिर्फ पक्ष-विपक्ष के नेताओं को विदेश का दौरा कराकर, घुमाँफिरा कर, खिला पिला कर इस पूरे मामले पर इतिश्री कर दिया जावे ? अब सवाल उठता है की ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले की जानकारी दुनिया तक पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके भारतीय नेताओ के प्रतिनिधिमंडल ने 33 देशों की यात्रा की। लेकिन भारत को मिला क्या?  कितने देशों ने भारत का समर्थन किया ? किसी ने पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कहा ?  जब पाकिस्तान के खिलाफ कोई एक्शन हुआ ही नहीं हुआ तो विदेशी दौरे का क्या मतलब ?

      भारत देश की विडम्बना हैं की देश में चुनावो का सिलसिला कभी रुकता नही है | अभी देश के 5 राज्यों में चुनाव हुए फिर कुछ विधायक MP बन गए, कुछ अपराधी जेल चले गए या उनका देहांत हो गया तो वहा  उपचुनाव हुए उनमे भी ऑपरेशन सिंदूर का जोर शोर से प्रचार देखने को मिला | खैर अब बिहार में कुछ ही दिनों  बाद चुनाव आ रहे है | बंगाल सहित पांच राज्यों में 2026 में चुनाव होने वाले हैं। फिर 2028-2029 में करीब 21 राज्यों में चुनाव हैं और फिर लोकसभा चुनाव। अब देखना ये है की इन सभी चुनावो में ऑपरेशन सिंदूर का कितना जिक्र होता है | लच्छेदार भाषण देना और हर मुद्दे पर चुनावी लाभ लेना देश के नेताओ को बहुत अच्छे से आता है लेकिन सेना के पराक्रम और वीरता का चुनावी लाभ लेना कहा तक सही है ?

       जब भी देश में ऐसी घटना होती है तो संसद का विशेष सत्र बुलाया जाता है भारत में पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के बाद संसद में विशेष सत्र होना लाजमी था लेकिन सरकार ने नही किया । जनता के सवालो से बचने के लिए सरकार ने झट से मॉनसून सत्र की घोषणा कर दी। अब सवाल उठता है की लगभग दो महीने पहले संसद सत्र क्यों ? सत्ता पक्ष से सवाल करना हर भारतीय का फर्ज है और विपक्ष इस पर चुप्पी साध ले तो फिर बेडा ही गर्क समझो | भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर द्वारा पकिस्तान में घुसकर पाकिस्तानी आतंकवादी कुत्तो को कूत्ते की मौत मारा जिससे इतिहास में सरकार का नाम गोल्डन अक्षरों में लिखा जायेगा लेकिन अपने देश में बेठे उनके हाकिमो और पहलगांव के आतंक मचाने वाले आतंकवादियो को अब तक नही पकड़ा गया शायद सत्ता पक्ष उन्हें पकड़ने के इंतेजार में हो तभी संसद सत्र अब तक नही बुलाया गया ताकि जब वो पकडे जाये तो संसद में जवाब दिया जा सके | खैर होने को कुछ भी सकता है लेकिन चुनाव जीतने के लिए देश के नेता किसी भी हद तक जा सकते है और किसी भी स्तर तक गिर सकते है | आगामी चुनावो को देखते हुए सभी राजनितिक दलों ने तैयारी शुरू कर दी होगी, ऑपरेशन सिंदूर के बारे में क्या भाषण देना है ? कहाँ देना है ? सब तय हो गया होगा क्योकि आजकल एक व्यक्ति चुनाव की तैयारी नही करता बल्कि एक बड़ी पॉलिटिकल मैनेजमेंट चुनावी टीम काम करती है |

        किसान आन्दोलन और तमाम आन्दोलनो में भारतीय मिडिया की जबरदस्त भद्द पिटी है क्योकि हालिया आंदोलनों में दलाल, कुत्ता, रखैल और दल्ला जेसे शब्दों से मिडिया को नवाजा गया | कई जगह तो मिडिया का पूर्ण बायकाट तक किया गया| इसकी क्या वजह हो सकती है ? क्या अब माडिया निष्पक्षता से अपनी बात नही रखती ? क्या अब माडिया सही मुददे नही उठाती? क्या माडिया सही इंसान से सही सवाल करने की हिम्मत नही करती ? इसके कई कारण हो सकते है या तो जबरदस्त फंडिंग हो रही है ?  या उनमे सत्ता पक्ष का डर बिठा दिया गया है ? अभी पकिस्तान से युद्ध हुआ देश में 26 लोगो की निर्मम हत्या कर दी गई लेकिन मिडिया ने सत्ता पक्ष से कोई सवाल नही किया की आतंकवादी बॉर्डर क्रोस करके भारत में केसे आये ? उनके पास इतने अत्याधुनिक हथियार केसे आये ? हमारी इंटेलिजेंसी क्या कर रही थी ? हमारी एजेंसी के पास इनपुट क्यों नही था ? इतना कुछ होने के बाद भी आतंकवादी पकडे क्यों नही गए ? इस युद्ध में कितना देश का नुकशान हुआ ? “राष्ट्रीय सुरक्षा में भारी उल्लंघन” के लिए जवाबदेही किसकी होगी ? आईबी प्रमुख तपन कुमार डेका को खुफिया विफलता के बाद दण्डित करने के बजाए उन्हें एक साल के लिए सेवा विस्तार सम्मान क्यों दिया गया ? आखिर ऐसी क्या मज़बूरी रही ? कुछ समय पहले नेताओ की जासूसी पर खूब विवाद हुआ अगर सत्ता पक्ष और हमारी इंटेलीजेंसी संस्थाये किसी भी विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और यहां तक कि न्यायाधीशों की जासूसी पेगासस स्पाइवेयर से कर सकती है, तो उसे सदिघ्द आतंकवादी नेटवर्क और देशद्रोह में लिप्त लोगो की जासूसी क्यों नही कर सकती है? आगे भी इस पर कोई चर्चा हो इसकी कल्पना तक नहीं जा सकती और सबसे बड़ी बात पाकिस्तान अपनी हार पर क्यों उछल रहा है ? हमारी विदेश नीति से क्या फायदा हुआ ? खैर आजकल जनता में आम चर्चा है की जो नेता पहले मिडिया के नाम से डरते थे आज आलम ये है की वही मिडिया नेताओ के इशारे पर नाचती है ? तभी आज कोई नेता किसानो पर गाडी चढ़ा दे, या देश की बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करे किसी को कोई परवाह नही है बल्कि ऐसे नेताओ और अपराधियों का फूलो की माला से स्वागत होता है उनके जलसे होते है | मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह ने देश की देशभक्त बेटी और ऑपरेशन सिंदूर का मुख्य चेहरा कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में जो कहा वो सर्व विदित है मिडिया ने किसी व्यक्ति विशेष से इस पर इस्तीफा क्यों नही माँगा ? एक देशभक्त भारत की बेटी के बारे में ऐसा कहना कितना उचित है ? उसको सिर्फ मंत्री पद से हटा देना क्या पर्याप्त होगा ? आजकल तो सोशल मिडिया पर किसी नेता के खिलाफ कुछ लिख देने भर से उनको पुलिस जेल में डाल देती है फिर ये मंत्री साहेब बाहर केसे घूम रहे है ?

        अब मुख्य सवाल आता है की अगर मिडिया सवाल पूछने की हिम्मत नही करती तो सवाल कौन करे ? किसको हक है नेताओ से सवाल करने का ? इसका जवाब है लोकतंत्र के असली मालिक हमारी जनता नेताओ से सवाल करे |

 

अब जनता के वो सवाल जो उनके मन में है लेकिन वो भी पूछ नही पा रहे है -

1.      पाकिस्तान के राडार सिस्टम नष्ट कर दिए थे तो हमले रोके क्यों ?

2.      जब पकिस्तान के एयर बेस तबाह हो गए तो युद्ध रोका गया क्यों ?

3.      जब उनकी सेना में दो फाड़ हो गए और वो आपस में ही लड़ रहे थे तो हमला रोका गया क्यों ?

4.      जब पकिस्तानी सेना पर उनके देश की जनता हमलावर थी तो हमले रोके गए क्यों ?

5.      जब बलूचिस्तान आर्मी पकिस्तानी सेना से लड़ाई कर रही थीं और पाकिस्तान बेहद कमजोर दिख रहा था उस स्तिथि में पकिस्तान दो मोर्चो पर एक साथ युद्ध नही लड़ सकता था फिर युद्ध विराम क्यों ?

6.      पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रान्त अलग होने का सपना देख रहा था तो बंगला देश की तरह उसको अलग नही किया गया क्यों ?

7.      जब तालिबान ने पकिस्तान की सीमा पर कब्ज़ा कर उनकी चौकी उड़ा दी ऐसे में तीसरे मोर्चे पर पकिस्तान केसे युद्ध लड़ता फिर संघर्ष विराम क्यों ?

8.      जब पकिस्तान इतना कमजोर हो गया था तो उसको तोड़ा नही गया क्यों ?

9.      हर भारतीय का सपना है POK वापिस लेना | सभी जानते है कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान ने दबा रखा है उसको वापिस लेने का अच्छा मौका था फिर उसको छोड़ा क्यों  ?

10.   जब पाकिस्तान के पास युद्ध लड़ने के सामान खत्म हो गया था तो फिर संघर्ष विराम क्यों ?

11.   भारत कभी मध्यस्ता स्वीकार नही करता फिर डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा बार बार ट्रेड की धमकी देकर मैंने संघर्ष विराम कराया इस बात का खंडन और स्पस्टीकरण क्यों नही दिया जा रहा ?

12.    बेहद आश्चर्य जनक बात है कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान को महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता और दीर्घकालिक निवेश को मंजूरी दी क्यों ?

13.    पाकिस्तान “बार-बार सीमा पार आतंकवाद में शामिल” वैश्विक जांच से बच जाता है क्यों ?

14.   सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि पिछले 11 वर्षों में विदेश मामलों पर लगभग 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुये है उनका क्या फायदा हुआ हुआ ?

15.    पाकिस्तान को बमुश्किल एक महीने बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया क्यों ?

16.   जब देश के 150 करोड़ भारतीय देश के लिए पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट थे तो क्या कारण रहे की संघर्ष विराम करना पड़ा ?

ऐसे कितने ही सवाल है जो आम जन को सत्ता पक्ष से पूछने चाहिए ? किसी को तो इन सवालो की जवाबदेही लेनी होगी इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर नेताओ की चुप्पी अस्वीकार्य है। मालूम होता है की जनता के इन सभी सवालों के जवाब कोई नेता कभी नही देगा | हमारे गाँवों में एक कहावत है जिसकी लाठी उसकी पाटी अर्थात देश में जिस पार्टी की सत्ता होती है उसी का पावर चलता है और जनता भी सीधा कभी उन से नही भिड़ती क्योकि सबको मालूम है की सत्ता पक्ष से लड़ना इतना आसान नही होता लेकिन ये भी सत्य है की जब जनता सडको पर आती है ओर सत्ता के खिलाफ आन्दोलन करती है तो इतिहास गवाह है सत्ता के बेर बिखर जाते है | आज टेक्नोलोजी का जमाना है सारा दिन सत्ता पक्ष का प्रचार प्रसार होता रहता है ऐसे ऐसे सोफ्टवेर आ गए है जो आपकी भावनाओ को समझते हुए आपको उसी प्रकार की विडियो दिखाता है और आप भ्रमित हो जाते है आज AI के ज़माने में सच और झूठ को पहचान पाना लगभग असम्भव है | उपर से जब शिक्षा का आभाव हो और नेता आपको निशुल्क या कम कीमत पर अनाज और खाते में कुछ पैसे लालच के लिए डाल देता हो तो जनता का लालच उन्हें गाँधी जी के बंदर बना देता है जो अपनी आँख, कान और मुहँ को बंद रखते है जिन्हें ना नेताओ की फैलाई गंदगी दिखाई देती है, ना उनके खिलाफ कुछ सुनते है और ना ही उनके गलत कार्यो के खिलाफ कुछ बोल पाते है |  साथ ही बेरोजगारी के आलम में जब पेट भर कर खाना मिल जाये और चुनाव के समय शराब, साड़ी और नकदी मिल जाये तो इंसान लंगडा लूला और मूक बधिर बन ही जाता है |

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