राजनीती गलियारों की चर्चा

News Publish Date: June 11, 2025

मौसम में सर्दी के इजाफे के साथ राजनीतिक तापमान सिर चढ़ रहा है।  हर गली, मोहल्ले, चौराहे, चाय की थड़ी, ओर चौपाल पर हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ मुख्यमंत्री पद की चर्चा आम हो चली है हर इंसान अपना अपना आंकड़ा बताने में मशगूल है ।  जीते हुए विधायक संभावित मुख्यमंत्री के घर चक्कर लगा कर उनकी गुड बुक में रहना चाहते है और हारे हुए विधायक इस उम्मीद में चक्कर लगा रहे है कि भागते चोर की लंगोटी ही सही मतलब सरकार में कोई छोटी मोटी जिमेदारी मिल जाये तो उनकी चवन्नी भी चल पड़े।  चुनाव समाप्त हो चुके है 4 राज्यो में होने वाले चुनावों में 3 राज्य पूर्ण बहुमत से भाजपा ने जीते ओर एक राज्य कॉंग्रेस ने । हर राज्य की राजधानी से देश की राजधानी तक राजनीति के धुरंधर चक्कर लगा रहे है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से देश की राजधानी दिल्ली चक्कर लगाने वाले नेताओं की भी एक लंबी लिस्ट है। कहने को तो वो कहते है कि हम मुख्यमंत्री की दौड़ में नही है हमे तो आलाकमान से सीखना है उनके नेतृत्व में काम करना है लेकिन राजनीति में हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के ओर होते है। नेताओ ने अपने घोड़े दौड़ा रखे है जिनकी आंखों की दोनों तरफ पट्टियां बंधी है उन्हें कुछ नही दिखता। जिस तरह अर्जुन ने आंख पर पट्टी बांध कर मछली की आंख में तीर मारा था ठीक वैसे ही नेताओ को मंत्री और मुख्य मंत्री की कुर्सी दिख रही है।

इस कुर्सी को नेता मांगते तो सेवा करने के लिए है लेकिन पता नही इसमे ऐसा क्या है जिसे ये छोड़ना ही नही चाहते। कल का आम इंसान इस कुर्सी पर बैठ कर कब खास हो जाता है पता ही नही चलता । लाखो करोड़ो की संपत्ति चंद सालों में कैसे बन जाती है पता नही ?  फिर भी नेता इस कुर्सी को छोड़ता नही है ओर सबसे मज़े की बात तो ये है कि जो जनता नेता को इस कुर्सी पर बैठाती है वो स्वम् भी कभी सवाल नही पूछती की ये अकूत संपत्ति उसके पास आई कहाँ से? खैर जनता बहुत भोली ओर सीधी है और सब भूल जाती है चुनाव के समय दिए गए चंद लालच या पार्टी भक्ति में लीन रहने वाले व्यक्ति ये सवाल पूछ भी नही सकते ।

   राज्य के मुख्यमंत्री जी के बड़बोलेपन को हमने सुना था कि मैं तो इस कुर्सी को छोड़ दु, ये कुर्सी मुझे नही छोड़ती। जनता मान भी लेती है कि श्रीमान जी बड़े नेता है ऊपर से जादूगर भी है कुर्सी से एक पुराना नाता है जरूर कुर्सी ने इनसे ऐसा कहा होगा, लेकिन परिणाम आ चुका है राज्य में सरकार रिपीट करने का दम्भ भरने वाले जादूगर साहेब की सिर्फ 69 सीट आई है उनमें से भी कुछ सीट पायलेट साहेब की है । सरकार रिपीट करने का तो छोड़ो अब अपनी पोजीसन का ध्यान रखो जो अब आलाकमान के भरोसे है ।

       किसी को राजधानी से बुलावा आया है ,कुछ स्वम् ही राजधानी भागे जा रहे है और कुछ अपने क्षेत्र में ही अपनी ताकत दिखा रहे है ताकि कुछ नही तो छोटा मोटा मंत्री पद तो मिल ही जाए । छत्तीसगढ में भाजपा में कोई स्थानीय नेता इतने बड़े कद का नही ही इसलिए वहां सब आलाकमान तय करेगा और वहां कोई चूँ भी नही करेगा। हालांकि विष्णु देव साय का नाम वहाँ प्रमुखता से चल रहा है।

       मध्यप्रदेश में जहाँ भाजपा और कॉंग्रेस की कांटे की टक्कर बताई जा रही थी वही भाजपा ने 163 सीट जीत कर अपना परचम फिर से लहरा दिया । मध्यप्रदेश के शिवराज मामा लाडली बहनो के बीच बैठ कर शोसल मीडिया पर पोस्ट कर रहे है और लिख रहे है कि मैं मुख्यमंत्री की दौड़ में नही हूँ लेकिन सबको पता है इस कुर्सी को छोड़ने का मन किसका है ? मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है मुख्यमंत्री का पद नही मिलने की कसक में कॉंग्रेस छोड़ कर  भाजपा का दामन थामते वक्त शायद उस वक्त मुख्यमंत्री पद की बात प्रधानमंत्री से जरूर हुई होगी । मध्यप्रदेश में तो कॉंग्रेस के लड्डू धरे रह गए सट्टा बाजार ने बढ़ चढ़ कर बोली लगाई लेकिन बेचारे क्या करे मुँह तक आये लड्डू, मुँह के अंदर नही गए।

    राजस्थान में कुर्सी की चाहत रखने वालों की एक लंबी लिस्ट है - पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी सीनियरिटी के नाते ताल ठोक रही है साथ ही पार्टी को महारानी गायत्री देवी जी के अहसान को याद दिला रही है, विधायको का साथ भी है , ऊपर से चंद दिनों में लोकसभा चुनाव आ रहे है जो उनकी दावेदारी मजबूत बनाती है लेकिन क्या करे आलाकमान की नजर थोड़ी टेडी नजर आ रही है । बाबा बालक नाथ नया हिंदुत्व चेहरा है जिन के साथ योगी आदित्यनाथ का हाथ है जो टिकट दिलाने से लेकर उनके लिए रैली तक करते है इसके अलावा उनको राजनीति, प्रशासनिक व विधायको को सम्हालने का अनुभव नही है । आदिवासी नेता किरोड़ी लाल मीणा का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल है वे सांसद के पद से इस्तीफा दे चुके है , लंबा राजनीतिक अनुभव है। ओर जिस तरह नयी आदिवासी राजनीतिक पार्टी का उदय हुआ है उस हिसाब से किरोड़ी लाल मीणा का नाम मजबूत माना जा रहा है लेकिन आलाकमान उनको उप मुख्यमंत्री बना सकती है । जयपुर राजघराने की राजकुमारी दीया कुमारी का नाम भी इस रेस में शामिल है क्योकि आजकल  भाजपा आलाकमान जिस तरह उनकव सभी कामो में आगे कर रहा है उस से उनका नाम भी इस लिस्ट  में शामिल है । ओम बिरला का नाम भी इस रेस में सामने आया है जो आलाकमान के बड़े चहेते है। जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम भी कुर्सी की रेस में शामिल है । अर्जुन राम मेघवाल का नाम भी इस रेस शामिल है ।

        भाजपा अपने फैसले को अंतिम समय तक जग जाहिर नही करती और फैसले के पीछे गहन मंथन होता है । भाजपा पहले भी कई फैसलों से जनता को चौका चुकी है  जिस तरह हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को गुमनामी की अंधेरे से उठाकर शीर्ष कुर्सी पर बिठा दिया उसी प्रकार जीते हुए राज्यो में फैसले चौका भी सकते है ।

 बरहाल इन राज्यो में भाजपा ने अपने शीर्ष नेताओं के नाम पर चुनाव लड़ा है और बेहतर परिणाम आया है इस से साफ है कि भाजपा का डबल इंजन कॉंग्रेस आलाकमान की तरह किसी के दबाव में तो नही आयेगा ओर बदलाव भी किए जा सकते है। फैसले चोकाने वाले भी हो सकते है खैर इस वक्त मुख्यमंत्री के नाम का फैसला भविष्य की गर्त में ओर भाजपा आलाकमान के पास है लेकिन इतना तय है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए कुछ समय पुराने नेताओ पर भरोसा किया जा सकता है सभी राज्यो में ऐसा संभव नही है ।

 

रही बात ये नेताओ के आपसी संबंध ओर दिखावे की तो इनके लिए बस ये ही कह सकता हूँ....

कल सियासत में भी मोहब्बत थी,

       अब मोहब्बत में भी सियासत है|

                                                         लेखक-   डॉ. हरीश कुंद्रा

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