चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है,
उलझन घुटन हिरास तपिश कर्ब इंतिशार वो भीड़ है के साँस भी लेना मुहाल है।
मशहूर शायर मलिकजादा मंजूर अहमद ने ये शेर इश्क के किसी एहसास में लिखा, मगर शेर में जो दिल्ली का हाल बताया है, वो आज शहर की जहरीली आबो हवा का आईना है। दिल्ली की हवा इस कदर दमघोंटू हो चुकी है कि लोगों का सांस लेना तक दूभर हो गया है। दिल्ली की हवा में सांस लेना हर रोज करीब 30 से 40 सिगरेट पीने के बराबर है।
ख़राब हवा को मापने के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का सहारा लिया जाता हैं। इससे पता चलता है कि किसी इलाके की हवा कितनी खराब है। AQI से हवा में मौजूद एयर पॉल्यूटेंट्स से हमारी सेहत को क्या नुकसान हो सकते हैं? ग्राउंड लेवल ओजोन, पार्टिकल पॉल्यूशन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की कितनी मात्रा हवा में मोजूद है।
खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक ने लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। इस समस्या के पीछे कई कारक काम कर रहे हैं, जिनमें पराली जलाना, थर्मल पावर प्लांट्स, उधोग, वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण और अन्य कारक शामिल हैं।
प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी से ख़तरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। AQI का स्केल 400 के पार पहुंचने के बाद दिल्ली में ग्रैप-4 लागू करना पड़ा इसके तहत स्कूल बंद कर दिए गए हैं और लोगों को घरों के अंदर रहने की सलाह दी गई है। सर्दियों की शुरुआत के साथ दिल्ली में ऐसे हालात कई साल से बनते हैं. एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक, प्रदूषण की वजह से दिल्ली के लोगों की उम्र में 10 साल की कमी आ रही है, बावजूद इसके कोई भी सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है । चुकी किसान सबसे आसान टारगेट है तो सरकार सिर्फ पराली जलाने पर जुर्माने की तो बात करती है लेकिन दुसरे पावरफुल कारणों पर जुर्माने, सख्त कार्यवाही या रोकथाम पर बाते करने की हिम्मत किसी सरकार में नही। उल्टा जिम्मेदारी लेने के बजाये एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर इतिश्री कर कर ली जाती है और आम जनता को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है ।
दिल्ली-एनसीआर थर्मल पावर प्लांट कोयला-निर्भरता के कारण 281 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जित किया जो की पंजाब और हरियाणा में 89 लाख टन पराली जलाने से निकलने वाले 17.8 किलोटन प्रदूषण के मुकाबले 16 गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। थर्मल पावर प्लांट साल भर प्रदूषण का एक बड़ा स्थायी स्रोत होते हैं जबकि पराली सिर्फ चंद महीने में जलाई जाती जाती है तो इस समस्या का सबसे बड़ा स्रोत क्या है?
गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम और ग्रेटर नोएडा सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में मंगलवार को वायु गुणवत्ता ‘खराब' रही थी। जो गंभीर श्रेणी में आता है। एयर क्वालिटी AQI अगर 0-50 हो तो अच्छा, 51-100 ठीक-ठाक , 101 से 150 सेंसेटिव, 151-200 ख़राब, 201-300 अनहेल्दी, 301 से 500 बहुत खराब होता है। बढ़ते प्रदुषण के कारन लोगों में ब्रेन स्ट्रोक के मामले आ रहे हैं। विकलांगता और कई मामलों में हार्टफेल के लिए भी एयर पॉल्यूशन एक कारण होती है। राजस्थान राज्य को सबसे अधिक राजस्व देने वाला एनसीआर क्षेत्र भिवाडी में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) इस समय 309 है।जहाँ पानी के निकास की व्यवस्था तक नही है। बारिश के दिनों में यहाँ भयंकर काला पानी भरता है जिसकी वजह यहाँ के उधोग है जिसके कारण यहाँ खेती की जमीं भी बंजर हो रही है ओर बीमारिया जन्म ले रही है और अब ये दम घोटू प्रदुषण।
साल 2023 में सबराकनॉइड हैमरेज (ब्रेनस्ट्रोक) के कारण होने वाली लगभग 14% मौतों और विकलांगता के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है साथ ही प्रदूषण में सांस लेने से फेफड़े कमजोर हो जाते हैं. फेफड़ों में प्रदूषण जमने लगता है, जिससे वो सिकुड़ने लगते हैं. प्रदूषित हवा में PM 2.5 पार्टिकल्स होते हैं। जब ये पार्टिकल्स सांस के जरिए शरीर में घुसते हैं तो ऑक्सीजन के साथ हर अंग में पहुंच जाते हैं फिर ये हर अंग को नुकसान पहुंचाते हैं और कैंसर फैलाने की कोशिश करते हैं। दिल की बीमारियों का रिस्क बढ़ाते हैं जैसे दिल का दौरा पड़ना, दिल का कमजोर हो जाना, लिवर और किडनी पर भी प्रदूषित हवा का असर पड़ता है। लिहाजा लोगों की उम्र कम होती चली जाती है। इतने गंभीर विषय पर कोई सरकार या नेता बात करने की हिमाकात नही करता।
देश की सरकारो को किसानों को पराली जलाने के बजाय उसे खाद या बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। थर्मल पावर प्लांट्स में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों को लगाया जाना चाहिए और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वाहनों को विद्युतीकृत करके वाहन प्रदूषण को कम किया जा सकता है। सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देकर निजी वाहनों के उपयोग को कम किया जा सकता है। औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। अधिक संख्या में पेड़ पौधे लगाकर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
कोरोना जेसी महात्रासदी के वक्त जब लोक डाउन हुआ तब दिल्ली कि जनता ने शुद्ध हवा और साफ़ नीले आसमान का नज़ारा देखा. उदाहरण के लिए, 2020 में लॉकडाउन के शुरुआती 21 दिनों में आनंद विहार में पीएम 2.5 का स्तर तीन सौ से गिरकर 101 तक आ गया। खैर लॉकडाउन से प्रदूषण में अस्थायी गिरावट आ सकती है, लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं है, ऊपर से इसका सबसे बड़ा असर गरीबों पर पड़ता है, जैसा कि कोविड लॉकडाउन के दौरान देखा गया था।
ब्रिटेन में 1950 के दोरान ग्रेट स्मॉग हुआ जहां प्रदूषण की वजह से 12,000 लोगों की जान गई, लेकिन वहा लॉकडाउन नहीं लगाया गया. इसके बजाय ब्रिटिश सरकार ने ठोस कदम उठाए और हालत उनके पक्ष में थे। चीन की राजधानी बीजिंग में करीब 10 साल पहले AQI का लेवल 100 के पार चला गया था. मगर चीन ने साल 2013 में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बड़ी योजना बनाई और साल 2022 आते-आते बीजिंग का AQI 30 पर आ गया जब अपना पड़ोसी देश AQI सुधार सकता है तो भारत की सरकार क्यों नहीं? लंदन और चीन की तरह दिल्ली भी प्रदूषण पर जीत हासिल कर सकती है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक संकल्प और गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाना होगा, ताकि इसे प्राथमिकता दी जा सके। जब तक सरकार और विशेषज्ञ मिलकर ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। दिल्ली को अगर साफ हवा चाहिए तो इसके लिए लंबा सफर तय करना है। असली समाधान तो टिकाऊ कदमों से ही संभव है।
नेताओ द्वारा दिल्ली प्रदुषण पर की गई कड़ी आलोचना और ठोस कार्यवाही आज तक समझ नही आई? इससे होता क्या है? सिर्फ जनता को खुश करने के लिए मात्र दिखावा? और हमारी जनता तो कितनी उदासीन है की उसे ना तो अपनी जान की परवाह है और नही आने वाली पीढियों के भविष्य की क्योकि हमारे नेता हमारी जनता की कमजोर नश जानते है वो जनता को फालतू के विषय में उलझा कर रखते है ताकि मुलभुत मुद्दों और गंभीर विषयों पर उनका ध्यान ही नही जाए। आखिर जनता अपने नेताओ से सवाल कब करेगी? देश की राजधानी को गेस चैम्बर बनाने में जिनका हाथ है उन पर कठोर कार्यवाही क्यों नही? दिल्ली NCR में उधोगो पर कार्यवाही क्यों नही? कारखानों पर जुर्माना क्यों नही? आखिर ये नेता कब अपनी कुम्भकर्णी नींद से जागेंगे? आखिर ये सिस्टम कब सुधरेगा? क्यों देश की राजधानी का ये हाल हैं? आम जनता क्यों विरोध नही करती? क्या ये सब ऐसे ही चलता रहेगा? आखिर कब होगा सुधार? अगर हमने आज इसके खिलाफ आवाज नही उठाई तो आने वाली पीढ़िया हमें कभी माफ़ नही करेगी।
लेखक
डॉ. हरीश कुंद्रा
समाजसेवी और राजनितिक विश्लेषक