दास्ताँ ऐ मेवात

News Publish Date: June 11, 2025

देश की राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूरी पर हरियाणा राज्य के 1860 वर्ग किलो मीटर में फैले सवार्धिक मुश्लिम आबादी वाले, 739 जिलों में सबसे अधिक अविकसित, स्वास्थ्य व पोषण, शिक्षा, कृषि व जल संसाधन वितीय समावेश, कौशल विकाश, बुनियादी ढांचा यहाँ तक की जीवन स्तर में भी बहुत ख़राब स्तिथि वाले मेवात जिले के नूंह में रहने वाले मेवातियो पर अक्सर कभी दंगा, पशु चोरी, धन चोरी,वहान चोरी,गौ कसी, साइबर अपराध तो कभी अपनी रूढ़ीवादी सोच के चलते इन पर हर रोज़ ही सवाल उठते रहते हैं| क्यों यहां अशिक्षा इतनी अशिक्षा है ? क्यों यहाँ इतना अपराध है ? क्यों आज सायबर क्राइम का गढ़ है? क्यों लोग गाहे बगाहे गुमराह लोग इसे मिनी पकिस्तान कहते है ? आज बेशक मेवात की ये डरावनी तस्वीर हो लेकिन हकीकत इससे कोसो दूर है| ये वही मेवात है जिनकी जिद और गुस्से ने दिल्ली के तख्त को हमेशा मुश्किल में डाला| फिर चाहे बलबन व बाबर से लड़ाई हो या फिर अंग्रेजों से संग्राम, मेवाती हमेशा मुगलों और अंग्रेजो पर भारी ही पड़े हैं| 1857 की क्रांति के आन्दोलन में मेवाती शूरवीरो के बलिदान की अमर कहानिया उनके नाम के साथ मेवात के नूंह, बड़कली, फिरोज़पुर झिरका में शहीद स्तंभो पर दर्ज हैं जिन्हें देखकर मेवात और मेवातियों को लेकर आपका नजरिया बदल जाएगा|

                              सन् 1260 में गयासुद्दीन बलबन बड़े युद्ध पर निकलता उस से पहले मेवातियो ने उसके शाही ऊंट लूट लिए, हैरान परेशान बलबन ने गुस्से में 9 मार्च 1260 को अचानक मेवात पर चढ़ाई कर दी, करीब 20 दिनों तक उसने मेवों का नरसंहार किया उसके बाद भी उसका गुस्सा शांत नही हुआ उसके बाद बलबन ने सैनिकों से कहा कि जो भी मेवाती का सिर लाकर देगा वह उसे चांदी का सिक्का देगा और जो जिंदा मेवाती को लाकर देगा उसे वो 2 चांदी के सिक्के देगा| 29 मार्च को सेना दिल्ली लौटी तो उसके साथ 250 मेव मुखिया थे| 2 दिन बाद इनमें से कई को जनता के बीच फांसी लगा दी गई और कई हाथी से कुचलवा दिए गए उसके बाद फिर से  करीब 12 हजार मेवातियों को मार डाला|

                            1526 में मेवातियों के मुखिया हसन खा मेवाती ने मुग़ल राजा बाबर के खिलाफ हिन्दू राजा राणा सांगा का साथ दिया| 1526 में जरूर उनकी हार हुई लेकिन मेवातियों ने हार नहीं मानी| बाबर ने फिर से मेवातियों पर जोरदार हमला किया, इस हमले ने मेवातियों के शासकों जिन्हें खानजादे भी कहा जाता था, को काफी नुकसान पहुंचाया लेकिन मुगल भी मेवातियों को दबा नहीं सके| औरंगजेब के दौर में इकराम खान की अगुआई में मेवाती फिर से मुगल सेना पर लगातार हमले कर रहे थे|  परेशान औरंगजेब ने 1685 में राजा जय सिंह की अगुआई में मेवात में एक सेना भेजी| काफी मुश्किलों के बाद मेवाती काबू में आ सके| बाद में राजा जय सिंह को इस इलाके का प्रशासक नियुक्त कर दिया गया|

                             10 मई 1857 की क्रांति की शुरुआत होते ही 12 मई को क्रांतिकारियों ने गुड़गांव में अंग्रेजों के ठिकानों पर हमला कर दिया था| आज जिस जगह गुड़गांव का रेलवे स्टेशन है तब वहां मेवों का ‘हरनौल गांव’ हुआ करता था, इस गांव के मेवातियो और आसपास के मेवाती गाँवों ने 13 मई को नूंह स्थित अंग्रेजों के ठिकानों पर जोरदार हमला कर 3 दिन में ही अंग्रेज सिपाहियों को और एक बड़े अधिकारी मैक फरसन को मारा डाला|  ये मेवातियो की बहादुरी और साहस का परिणाम है की पूरा नूंह और पूरा मेवात नवंबर 1857 तक आजाद रहा था| इस क्रांति के इतिहास के पन्ने मेवातियों के खून से रंगे हुए हैं|

                      दिल्ली पर कब्जा करने के अंग्रेजों ने प्लान में कैप्टन विलियम ईडन को मेवात की तरफ से हमला करना था लेकिन उसे सोहना के पास क्रांतिकारी मेवातियों की सेना ने घेर लिया| कैप्टन विलियम ईडन ने अपनी डायरी में लिखा था कि अगर मेरे पास उस वक्त तोप नहीं होती तो ईश्वर जानता है कि मेरे साथ क्या होता| उसके बाद वो डरकर जयपुर भाग गया| सितंबर 1857 में अंग्रेजी हुकूमत ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया लेकिन तब भी मेवात आज़ाद ही रहा |

                         रूप्रका में कैप्टन डायमंड की अंग्रेजी फौज और क्रांतिकारियों के बीच भीषण लड़ाई हुआ जिसमें 400 मेवाती क्रांतिकारी शहीद हो गए | इस लड़ाई में पिहोवा के सरफुद्दीन ने अंग्रेजों को घेरने के लिए मोर्चा संभाल लिया था| पिहोवा से अंग्रेजी कैप्टन रामसे रास्ते में मिलने वाले हर गांव में आग लगाता चला गया जिससे मेवातियो को भारी नुकशान हुआ |  इस लड़ाई में सत्तर लोग मारे गए| 1857 क्रांति की यह अंग्रेजों के साथ मेवातियों की आखिरी लड़ाई थी.

                            छल कपट में माहिर अंग्रेजो ने फरवरी 1857 में मेवातियों से कहा कि अब पूरे मेवात पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया है इसलिए हम आपसे शांति समझौता करना चाहते हैं| समाज के कुछ जिम्मेदार लोग उनके बहकावे में नूंह पहुंचे जिन्हें अंग्रेज़ों की सेना ने घेर लिया, नूंह के पुराने बस अड्डे के पास एक बडे कुंवे के पास लगे बड़ के पेड़ पर 52 मेवाती क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया और बाकी  दिल्ली के चांदनी चौक में ले जाकर फांसी पर लटका दिया|

                                   1857 क्रांति के समय गुड़गांव में मेवों की अबादी लगभग 1,10,400 थी, इस आबादी ने 1857 में नूंह, तावडू, रायसीना, घासेड़ा, रूपडाका, दोहा और नंदी में अंग्रेजों के साथ सात युद्ध लडे थे पकडे गए 1043 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी| इस से इतर  मेवात के बुजुर्ग  बताते है क्रांतिकारियों की संख्या इतनी अधिक थी कि फांसी के लिए बड़ के पेड़ और फांसी की रस्सी तक कम पड़ गई थी जिसके चलते अंग्रेजों ने एक रस्सी से तीन-तीन क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटकाया था| जिनमें नूंह, फरीदाबाद, गुड़गांव जिले के मेवाती क्रांतिकारी शामिल थे जबकि इन आंकड़ों में आमने-सामने की लड़ाई में शहीद होने वालों का नाम शामिल नहीं है सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई में शहीद होने वालों की संख्या 6 से 10 हजार के बीच है| मीनार की तरह दिखने वाले खामोश खड़े शहीद स्तंभ मेवात के वीर शहीदों की दास्तान बयान करते हैं|

                          क्रान्तिकारियो का गढ़ होने के बावजूद, देश की राजधानी के इतने निकट होने के बावजूद , इतना विशाल क्षेत्र होने के बावजूद भी आखिर क्या कारन है की मेवात को लेकर ये नैरेटिव बनाया जा रहा है | गलत और झूठी बातों को मेवात से जोड़कर प्रचार किया जाता है | अपराध और अपराधी तो हर कोने में मौजूद है मगर ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेवात को ज़्यादा बदनाम किया जाता है| यहां के लोगों की समस्याओं को समझकर उनके निदान की कोशिश नहीं की जा रही है|  मेवात में रोज़गार नहीं है, जागरूकता का अभाव है, यहाँ के नेता मेवातियो को सही दिशा निर्देश नही देते बल्कि गुमराह करते है जिसके कारन अब मेवात के ये हाल है | क्या मेवात को बदनाम करने की राजनीतिक कोशिश है ?  यहां ऐसे में मेवात के बच्चों का भविष्य क्या होगा?  जब न तो ढंग से पढ़ाई होती है और न ही रोज़गार है|  नतीजतन कुछ युवा गलत रास्ते पर भटक जाते हैं|  सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए और इस समस्या का समाधान करना चाहिए| साथ ही भारत की आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले मेवातियो को सम्मान देने के लिए उन्हें शहीद का दर्जा देने के साथ ही उनकी वीरता के किस्सों को देश के स्कूलों और कॉलेजों की पाठ्यक्रम की पुस्तक में शामिल भी किया जाए ताकि मेवात के बारे में जनता की सोच को बदला जा सके | मेवात में हमेशा भाईचारा रहा है जिसको आजकल के नेता ख़राब करने में लगे है |

                             ये आपसी भाईचारे का ही परिणाम था की 1990 में जब पहली रथ यात्रा निकली थी तो लोगों में बड़ा डर का माहौल था, मुश्लिमो के साथ हिन्दू भी डरे हुए थे, लेकिन मेवात में कुछ नहीं हुआ| फिर 1992 में ढांचा गिराए जाने के बाद माहौल खराब हुआ, फिर भी मेवात में कोई सांप्रदायिक हिंसा की घटना नहीं हुई|  यहां सब किसान लोग हैं जिन्हें सिर्फ अपनी खेती से मतलब है पिछले साल भी यहां माहौल खराब करने की कोशिश हुई, मगर मेवात ने अपना भाईचारा बनाए रखा|

आखिर कौन है वो लोग जो चाहते है की मेवात अशांत हो ? कौन है वो लोग जो जान बुझ कर हिन्दू मुश्लिम करते है ? आखिर क्या फायदा मिलेगा उनको ? इन सब की पहचान मेवात के लोगो को करनी होगी और उन सभी से सावधान रहना होगा | इन नफरती लोगो से अपने आने वाले कल को बचाना होगा | आने वाली भविष्य की नस्ल को सम्हालना होगा और जिस मेवात की एकता और भाईचारे को अंग्रेज नही तोड़ पाए वो आज भी न तोड़ पाए ऐसे इंतेजाम करें होंगे |

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