वैलेंटाइन डे प्यार का प्रतीक एक सुनहरा दिन, जब पूरा विश्व प्रेम के महासागर में गोते लगता है, हर दिल प्यार के लिए धड़कता है। 14 फरवरी को ही वैलंटाइन डे क्यो आता है ? 14 फरवरी के दिन तीन शहीद संत वैलेंटाइन्स का उल्लेख मिलता है।" एक रोम में पादरी थे, दूसरे इंटरमना (अब टर्नी, इटली) के बिशप थे और तीसरे सेंट वैलेंटाइन अफ्रीका के रोमन प्रांत में शहीद हुए थे। वैलेंटाइन शब्द लैटिन भाषा से आया है जिसका अर्थ है मजबूत, शक्तिशाली या योग्य।
ऐसा कहा गया की वैलेंटाइन्स की मृत्यु की तारीख, प्यार के त्यौहार लुपरकेलिया के पर्व के साथ मिल गई हो । इन अवसरों पर, युवतियों के नाम एक बॉक्स में रखे जाते थे, जहाँ से पुरुषों द्वारा संयोगवश उन्हें निकाल लिया जाता था। दूसरा ऐसा माना जाता है जब संत वैलेंटाइन जेल में बंद थे तो वह से जेलर की बेटी को ख़त लिखा इस लैटर के अंत में लिखा था “फ्रॉम योर वैलेंटाइन”| 496 ईस्वी में, पोप गेलैसियस ने लुपरकेलिया पर्व को समाप्त करने का निर्णय लिया और उन्होंने 14 फरवरी को सेंट वेलेंटाइन डे के रूप में मनाने की घोषणा की। धीरे-धीरे, 14 फरवरी प्रेम संदेशों, कविताओं और फूलों जैसे उपहारों के आदान-प्रदान की तारीख बन गई जिसने धीरे धीरे आधुनिक रूप लिया| खैर प्यार को किसी दिन में बांध कर नही रखा जा सकता ये तो हर दिन हर पल का अहसास है फिर भी वैलेंटाइन डे का दिन आज पुरे विश्व में प्रसिद्ध है |
प्रेम शब्द धरती की परत दर परत जड़ों में समाया है. हमारे देश की मिट्टी में एक तरफ जहां वीरों का खून मिला है| वहीं एक हिस्सा उन प्रेमियों के लहू से भी सना हुआ है, जिन्होंने दुनिया को प्रेम का असली मतलब समझाया| प्रेम करना भले ही आसान हो सकता है, मगर इसे निभाना आसान नहीं होता| प्रेम ने हमेशा प्रेमियों से बलिदान मांगा है, और इसी बलिदान ने प्रेम को हमेशा के लिए अमर कर दिया| ऐसे ही बलिदानों ने इतिहास के पन्नों पर अपने खून से लिखी हैं कुछ प्रेम कहानियां, जो ये बात चीख चीख कर बताती हैं कि प्रेम ठंडे पानी का चश्मा नहीं, बल्कि दहकते आग का दरिया है| तभी अजीम शायर जिगर मुरादाबादी ने लिखा है- “ये इश्क नही आसां इतना ही समझ लीजे, एक आग का दरिया और डूब के जाना है”| कभी ये प्रेम तपते रेगिस्तान में जला तो कभी इसे दीवारों में चुनवाया गया| मगर जितनी भी बार इसे दबाने की कोशिश की गयी इतिहास ने उतने ही स्पष्ट सुनहरे अक्षरों में इनकी इबारत अपने सीने पर लिखी- पृथ्वीराज-संयुक्ता एक ऐसी प्रेम कहानी है जिसमे संयुक्ता ने बिना देखे सिर्फ पृथ्वीराज की बहादुरी के किस्से सुन कर प्रेम किया और उसके प्रण को पूरा करने के लिए पृथ्वीराज अपने दुशमन के गड में जाकर उसको ले कर आये| बाजीराव-मस्तानी मराठा पेशवा बाजीराव जिसको कोई युद्ध में कोई नही हरा पाया उसकी जान दूसरी मुस्लिम पत्नी मस्तानी के वियोग में गई और मस्तानी ने भी वियोग में अपनी जान त्याग दी| सलीम-अनारकली की दर्द भरी दांस्तां कौन नही जनता होगा जिसमे सलीम की जान बचाने के बदले अनारकली ने दिवार में चुनना पसंद किया|
चंद्रगुप्त-हेलेना, बिम्बीसार-आम्रपाली, बाजबहादूर-रूपमति, रजियासुल्तान-जमालुद्दीन, शाहजहां-मुमताज, मूमल-महेंद्र, अशोक-कौरवकी की प्रेम कथा अपनी अमिट पहचान रखती है| ढोला-मारू, मिर्जा-साहिबा, हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, सोनी-महिवाल इनकी प्रेम कहानी कौन नही जानता। ये प्रेम कथा ऐसी है जब भी याद आती है आंखों से पानी आ जाता है ऐसा प्रेम आजकल कहाँ देखने को मिलता है। लेकिन इतिहास अपने आप को दोहराता है हमारे देश के राजनेताओं की प्रेम कहानी भी खूब चर्चित रही है जिनमे प्रमुख है- राजीव गांधी-सोनिया गांधी, सचिन पायलट-सारा अब्दुल्ला, अखिलेश-डिंपल यादव, दिग्विजय-अमृताराय, शशि थरूर-सुनंदा पुष्कर जिन पर खूब कंट्रोवर्शी हुई लेकिन प्रेम के परवान को भला कोन रोक पाया है|
कहानी भले ही बदल जाये लेकिन प्रेम का भाव कभी नही बदलता ऐसी ही एक कहानी है मशहूर कवि-चित्रकार इमरोज ओर मशहूर कवयित्री राज्यसभा सांसद अमृता प्रीतम की। उन दोनों के बीच अथाह खुबसूरत निस्वार्थ प्रेम पहली मुलाकात से लेकर मरते दम तक रहा। अमृता ने जब आख़िरी सांस ली तब इमरोज़ ने लिखा-''उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं। वो अब भी मिलती है कभी तारों की छांव में कभी बादलों की छांव में कभी किरणों की रोशनी में कभी ख़्यालों के उजाले में हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं।” जिस ख़ामोशी से वे अमृता की ज़िंदगी में रहे, मोहब्बत इतनी ख़ामोश भी हो सकती है, इसे इमरोज़ को जान लेने के बाद ही जाना जा सकता है|
प्यार तो एक खुशबू की तरह है जो महसूस होती है जब नही होती तो लगता है सांस लेना दूभर है। नदी का समुन्द्र के लिए बेपनाह मोहब्बत होना इश्क का सबूत है जिसको पाने के लिए वो खुद को मिटा देती है| अगर महबूब का साथ हो तो कोई भी सफर यादगार बन जाता है. इस पर बशीर बद्र साहब लिखते हैं- “उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए”|
दिल से उत्पन्न हुआ अहसास प्रेम है, दिल की भावनाएं जब आपको मजबूर कर दे, आपका मन जब विचलित हो जाये, भावनाओ का भवंडर उठ खड़ा हो, आपकी तन, मन और मष्तिष्क पर काबू ना रहे, लगे कि आप अलग ही दुनिया मे है तो समझो प्रेम की गिरफ्त में है । सच्चा प्यार वह होता है जो सभी हालातो में आप के साथ हो, यानी दुख में आप का कंधा बने और खुशियों में बांहे फैला के उनका स्वागत करे । कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो ज़िन्दगी बदल जाती है। पर जिन्दगी बदलती है या नही, यह इंसान के उपर निर्भर करता है लेकिन एक बात जरूर है कि प्यार इंसान को जरूर बदल देता है।
दो इंसानों का प्यार में होने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि वो हमेशा एक साथ रहे, प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होना चाहिए। उनके बीच जमीन आसमान की दूरी भले ही हो लेकिन अहसास हमेशा पास का होना चाहिए। प्यार में दूरियां सिर्फ शरीर की हो सकती हैं, मगर रूह में प्यार बसाने के बाद प्यार अमर हो जाता है| जब दो लोग प्यार में होते है तो उनके बीच कोई सीमा नही होती, वो प्यार में कुछ भी कर सकते हैं। प्रेम एक खुबसूरत अहसास की भावना है, प्रेम तो आपका अस्तित्व है। स्वयं को खो कर स्वयं को पाना प्रेम है। ऐसे प्यार को लोग जन्म-जन्मान्तर तक याद रखते है। प्यार" शब्द वो है जिसे सुनकर ही हमें अच्छा महसूस होने लगता है, ये वो एहसास है जिसे हम कभी खोना नही चाहते। इस शब्द में ऐसी पॉजिटिव एनर्जी है ,जो हमें मानसिक और आंतरिक खुशी प्रदान करती है।
स्त्री व पुरुष के मध्य प्रेम होने के सात चरण होते है- देखते ही आकर्षित हो जाये, उसके बारे में ही ख्याल आते रहे, बाते करने की चाहत हो, बिना मिले जीना दुश्वार लगे, अपने प्यार का इजहार, साथ रहने की चाहत और अंतिम विवाह| जब दो लोग प्यार में होते है और उन्हें लगता है हम एकदूसरे के लिए ही बने है तो आपस मे विवाह कर लेते है, ऐसे विवाह को प्रेम विवाह कहते है। ऐसे विवाह पाश्चात्य संस्कृति में ज्यादा होते है, उनके प्रभाव में आने के बाद हमारे यहाँ भी ऐसे विवाह होने लगे है लेकिन ये सत्य नही है हमारे यहाँ भी प्रेम विवाह हमारी संस्कृति का हिस्सा रहे है जिन्हें हम पूर्व में गंधर्व विवाह कहते थे|
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार हिंदू धार्मिक शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाह बताए गए हैं- ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस व पैशाच है| परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था। ऐसी किवदंती है की उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना। भारतीय परिप्रेक्ष्य में श्री कृष्ण और रुक्मणि, पुरुरवा-उर्वशी, वासवदत्ता-उदयन के विवाह गंधर्व-विवाह के प्रख्यात उदाहरण हैं। ऐसे में कुछ लोगो द्वारा 14 फरवरी को शांति से पार्क में बेठे या रोड पर साथ जा रहे युवा कपल्स को परेशान करना समझ से परे है| हाँ अगर वो सार्वजानिक जगहों पर शांति भंग करे या अश्लीलता फैलाये तो कानून सजा मिलनी चाहिए|
ये गंधर्व विवाह प्रेम का पवित्र रूप थे जिसमे अपनापन, एक दूसरे का सम्मान, समर्पण, ओर प्रेम झलकता है। आज की पीढ़ी में प्रेम कम और वासना ज्यादा झलकती है इसको ओर अधिक बढ़ाया है आज की फिल्मों और साहित्यों ने नायक और नायिका के बीच सिवाए हवस ओर वासना के कुछ दिखाया ही नही जाता। अपने परिवार के साथ बैठ इन गीतों ओर फिल्मों को देख ही नही सकते। इन फिल्मों ने प्यार की परिभाषा ही बदल दी है जिसका असर आज की पीढ़ी पर अत्यधिक हो रहा है जो उनका अनुसरण करके खुद को कूल दिखाने का प्रयास करती है|
समर्पण प्रेम को दर्शाने के लिए बेहद खुबसूरत लाइन- हम आएंगे जरूर, तेरी शादी में, तुझे दुल्हन बने देखने, आखिर हम भी तो देखे खुशनसीब कैसे होते है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी अलग ही रास्ते पर है अगर किसी कारणवस उनकी पसंद से शादी नही होती तो शराब और अन्य नशे का सेवन करके स्वम् की जिन्दगी को नरक बना लेते है | वो ये भी नही सोचते की उनके ऐसा करने से उनको अथाह प्रेम करने वाली करुणामयी माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी | आपके सरपरस्त आपके पिता के सपनो का क्या हाल होगा|
प्रेम का मूल आधार तो समर्पण है जरूरी नही प्रेम सिर्फ एक स्त्री और पुरुष में ही हो, माता और पिता का अपनी संतान के लिए समर्पण प्रेम है, भाई बहन का एक दूसरे के साथ झगडे में बसा प्रेम, दोस्तों का निस्वार्थ प्रेम, प्रक्रति प्रेमियों का प्रक्रति से गूढ़ प्रेम, जीवो के साथ इन्सान का अद्भुत प्रेम, प्रेम के असंख्य रूप है| किसी को सेवा में प्रेम की अनुभूति होती है तो किसी को दुसरो को ख़ुशी देने में, किसी को अहसाय को सहायता देने में तो किसी को भूखे को खाना खिलाने में| प्रेम तो निश्वार्थ भाव की सेवा है जो दूसरों की खुशी में मिलती है| प्रेम ही संसार का मूल अस्तित्व है।